निदेशक का संदेश
मैं आशा करता हूँ कि वेबपेज पर दी गई जानकारी जनता के लिए सहायक सिद्ध होगी वेबसाइट के सुधार के लिए सुझाव आमंत्रित है इस अनुसन्धान संस्थान के अधिदेश का विस्तार वानिकी अनुसंधान की आवश्यकताओं के अनुरूप किया गया, जिसमें की शीत-मरुस्थलों के खनन क्षेत्रों का पारिस्थितिक पुन:सुधार तथा शंकुधारी एवं चौड़ी पत्तियों वाले वनों का पुनर्जनन तथा सम-शीतोष्ण एवं उच्च-पर्वतीय क्षेत्रों में कीट/ पतंगों की गतिविधिओं का प्रबंधन, कृषि-वानिकी तथा अन्य गतिविधिओं को भी इसके अधिदेश में शामिल किया गया है केंद्र को हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान के रूप में पुनर्गठित कर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद का क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान बनाया गया है तथा जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश में कार्य करने का दायित्व इस संस्थान को सौंपा गया है
संस्थान द्वारा सिल्वर फर एवं स्प्रूस के कृत्रिम पुनरुत्पादन कार्य करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है जिसमें की उनके बीज, नर्सरी तरीकों तथा पौधरोपण तकनीकों के अनुसंधान कार्य किए गए I अन्य उल्लेखनीय उपलब्धियों में देवदार, टैक्सस, चील, कैल तथा इनके चौड़ी पत्तियों वाले सहायक जैसे बर्डचेरी, ओक, मेपल, पॉप्लर तथा शीत मरुस्थल क्षेत्र में स्थानीय प्रजातिओं का नर्सरी एवं पौधरोपण तकनीकों का विकास सम्मिलित है संस्थान की अनुसंधान एवं प्रसार गतिविधिओं में हिमाचल प्रदेश के निम्न एवं मध्य क्षेत्रों में कृषि वानिकी मॉडल की स्थापना एवं मानकीकरण तथा खनन क्षेत्रों की आर्थिक, पारिस्थितिक पुन:उत्थान, जिसमें की उपयोगकर्ता समूहों के लिए कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना शामिल है
हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के शीत मरुस्थल में पाई जाने वाली वनस्पति के प्रलेखीकरण के साथ नर्सरी तकनीकों के मानकीकरण पर महत्वपूर्ण कार्य किया गया I वन्य-जीव अभ्यारण्यों में वनस्पति विविधता और पशु-वनस्पति सबंधों के आकलन पर अध्ययन इस आशा से शुरू किया गया कि आने वाले समय में संस्थान इन पहलुओं पर भी योगदान देगा देवदार, शीशम, चील, कैल, सिरिस, बान और विल्लो पर कीटों से होने वाले रोगों की जाँच की गई और राज्य वन विभाग हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को इनके उपचारात्मक उपाय सुझाए गए I शीतोष्ण क्षेत्रों के औषधीय पौधों की कृषि-तकनीकों के मानकीकरण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की गई इस प्रकार संस्थान, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर के अति-संवेदनशील वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के उत्कृष्ट सुधार में वैज्ञानिक प्रबंधन करके अपना योगदान दे रहा है
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के शीतोष्ण, उच्च-पर्वतीय और शीत मरुस्थल क्षेत्रों के उपरोक्त अधिशेसित क्षेत्रों का वर्ष 2007 में पुनर्विचार किया और संशोधित अधिदेश इस प्रकार से है:
- महत्वपूर्ण पौध प्रजातियों का वर्तमान में प्राकृतिक पुनर्जनन स्थिति का मूल्यांकन
- महत्वपूर्ण पौध प्रजातियों की नर्सरी पौधरोपण एवं बीज तकनीक का विकास
- खनन क्षेत्र और कठिन पारिस्थितिक क्षेत्रों के पुन-स्थापन हेतु तकनीक का विकास
- शीत-मरुस्थल प्रजातियों का सर्वेक्षण, चयन एवं प्रमाणीकरण करना तथा महत्वपूर्ण पौधों के जैवभार उत्पादन की उपयुक्त तकनीक का विकास
- उच्च क्षेत्रीय चरागाहों का सर्वेक्षण एवं उत्पादन क्षमता का मूल्यांकन
- बीज नर्सरी पौधरोपण क्षेत्र तथा प्राकृतिक वनों के लिए सस्ते एवं पर्यावरण अनुकूल कीट एवं रोग प्रबंधन तकनीक का विकास
- महत्वपूर्ण और अकाष्ठ वन-उत्पादों की कृषि तकनीक का विकास एवं वनस्पति सरंक्षण का मूल्यांकन
- विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के बहु-उद्देशीय पौध प्रजातियों का चयन एवं उनसे सम्बंधित जागरूकता पैदा करना, जिसमें जैव-ईंधन प्रजातियाँ भी समिल्लित है, के द्वारा आय के स्त्रोतों में बढ़ोतरी करना
- सम-शीतोषण पारिस्थितिक तंत्रों में भू-मंडलीय ताप के विभिन्न घटकों पर शोध एवं मूल्यांकन
- वनों पर निर्भर समुदायों की आजीविका बढ़ोतरी के लिए किफायती वन प्रबंधन तरीकों का चयन एवं विस्तार करना
- शहरी वानिकी के क्षेत्र में शोध कार्य
- पारिस्थितिकी एवं जैव-विविधता सरंक्षण के क्षेत्र में परामर्श परियोजनाएं, कीट सम्बन्धी समस्याएं, गैर-वन अकाष्ठ उत्पाद तथा वन-वर्धन महत्ता के विषयों पर शोध कार्य