











पौधशाला तकनीक का मानकीकरण:
क) शंकु- वृक्ष प्रजातियां:1. . रई तथा तोष प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक पुनर्जनन की असफलता तथा इसकी मानकीकरण पौधशाला तकनीक की अनुपलब्धता के कारण एक लंबे समय से वन विभाग के लिए कौतूहल का कारण बने रहे है। पौधशाला तकनीक का स्तरीकृत करने के लिए परीक्षण, बीज परिपक्वता सूचकांक का अध्ययन किया गया और शंकु के कृत्रिम विधि से पकने पर कार्य किया गया। बीज रोपाई के अंतर व गहराई सहित कमरतोड़ रोग से बचाव पर प्रोटोकाल स्थापित किये गए। प्रत्यारोपण तकनीक को स्तरीकृत किया गया। बीज बुवाई के लिए अपेक्षित छाया की जरुरत का निर्धारण किया तथा उपयुक्त छाया पर्दान करने वाले सामन्ती विकसित किया गया । बाहरी रोपण के लिए पौधशाला स्टाक का स्तरीकरण और पौधरोपण तकनीक: बाहरी पौधरोपण के लिए रई-तोष के अंकुरों की आयु व आकार का स्तरीकृत किया। बाहरी पौधरोपण के लिए लागत प्रभावी तकनीक पर कार्य किया।
2. राई व तोष की अनावृत्त जड़ों वाले पौधे उगाने के लिए पौधशाला तकनीक स्तरीकृत की गई और राज्य वन विभाग, हि.प्र. को हस्तांतरित की । 3. शंकुधारी अर्थात् देवदार, रई व तोष के कंटेनरीकृत पौधों को तैयार करने के लिए पौधशाला तकनीक स्तरीकृत की।
4. देवदार के लंबे पौधों को तैयार करने के लिए सफलतापूर्वक तकनीक विकसित की तथा उपयोगकर्ताओं को तकनीक उपलब्ध करवाई।
ख) चौड़ी पत्तीदार प्रजातियां: शंकुधारी के चौड़ी पत्तीदार सहायकों की साथ नर्सरी तकनीक जैसे हिमालयन पॉपलर ( पोपलर सिलिएटा), खरसू ओक (क्वारकस सेमीकार्पिफोलिया), मोहरू ओक (डायलटेरा), बर्डचेरी (प्रूनस कारनेटा), ख़नोर (अॅसकुलस इंडिका) और मेपल (एसर सीज़ियम) का विकास किया गया |