कृषि-वानिकी व विस्तारण गतिविधियां:
- कृषि वानिकी की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्वदेशी बहुद्देशीय प्रजातियां जैसे गे्रविया आप्टिवा (ब्यूल), अल्मस लेवीगाटा, बोहनिया वेरीगेटा (कचनार) और जल्दी बढ़ने वाले विदेशी जैसे पापुलस डेल्टाइड (जी-3 व जी48 मुख्य क्लोन) का नर्सरियों में प्रचार किया गया और नामित कृषिवानिकी माडल के अनुसार उगाने के लिए पांवटा घाटी और बल्ह घाटी के चुने हुए गांवों में किसानों को वितरित किए गए।
- किसानो के खेतों में उपयुक्त कृषिवानिकी माडल विकसित किए गए और तकनीकी ज्ञान के साथ 1993-2000 के दौरान बिना कीमत के किसानों को पोपलर के 5 लाख से अधिक इटीपी वितरित किए गए।
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हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में पारंपरिक कृषि वानिकी अभ्यास
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विकसित कृषि वानिकी मॉडल
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- उच्च पर्वतीय शीतोष्ण क्षेत्रों के लिए अन्तः फसल पैदावार माडल:
हाल ही तक शीतोष्ण फल उगाना हिमाचल प्रदेश का एक लाभप्रद व्यवसाय था। परन्तु अनियमित वर्षा के साथ कम बर्फबारी के कारण यह फल की फसलें लगातार असफल हो रहीं है । विभिन्न कीटों तथा रोगों के हमले, बढ़ता तापमान, क्षेत्र का घटता वन क्षेत्र, सेब के वृक्षों पर अनुकूलतम फूलों के लिए सर्दी के दौरान वांछित ठंड की अवधि का घटना आदि से कम पैदावार और कमतर गुणवत्ता से किसानों/ बागबानों को विविधता के माध्यम से अपनी आय के लिए अन्य विकल्पों को ढूंढना पड़ा। संस्थान ने इन रेखाओं पर कार्य किया और वैज्ञानिक प्रयासों से वाणिज्यिक महत्वपूर्ण औषधीय पौधों जैसेः एकोनिटम हीट्रोफाइलम (अतिश), वलरियाना जटामांसी (मुश्कबाला), पिक्रोहिज़ा कुरूआ (कुटकी) पोलीगोनेटम वर्टिसिलेटम (सालम मिसरी) और एंजेलिका ग्लूका (चोरा) और भूमि की प्रति यूनिट उत्पादन वृद्धि में मदद के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के उच्च पर्वतीय शीतोष्ण क्षेत्रों में बागबानी पौधरोपण से किसानों की आय बढ़ाने के लिए अन्तःफसल पैदावार माडल विकसित किए। |
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- “ पहाड़ी बांस पर राष्ट्रीय सेमिनार: ” ग्रामीण आजीविका सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन 17 से 18 अक्तूबर, 2014 को मनाली में आयोजित किया गया। इस कार्यषाला में राज्य वन विभागों, विश्वविद्यालयों अनुसंधान संगठनों, गैर सरकारी संगठनों इत्यादि से व्यवसायियों ने भाग लिया।
पहाड़ी बांस उत्पादों की प्रदर्शनी एवं शिल्प मेला was organized हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के वन्य जीव सूचना एवं विवेचना केन्द्र (समीप एम.सी कार्यालय) मनाली में 16/10/14 से 20/10/14 तक (पांच दिन) आयोजित किया गया। प्रदर्शनी में उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश के लगभग 25 बांस कारीगरों ने अपने उत्पादों को प्रदर्षित किया।
- कीट एवं रोग - वन पारिस्थितिकी तंत्र में उनके प्रसंग व प्रबंधन पर सेमिनार: 25 व 26 मई, 2011 को हि॰ व॰ अ॰ स॰, शिमला में आयोजित किया गया। कार्यशाला में राज्य वन विभागों, विश्वविद्यालयों, और अनुसंधान संगठनों इत्यादि से प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- ‘ भारतीय वानिकी अनुसंधान सूचना प्रणाली पर तीसरी इ-चैम्पियन कार्यषाला एवं प्रशिक्षण ’ 29 सितम्बर, 2008 से 3 अक्तूबर] 2009 तक हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला में आयोजित किया गया। आइसीएफआरई मुख्यालय से समस्त आइसीएफआरई संस्थानों के इ-चैम्पियंस ने कार्यशाला में भाग लिया।
- ‘ हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला में उत्तरी पश्चिमी हिमालय में वन कीट-नाषि व रोग प्रबंधन पर सिम्पोजि़्ायम 10 व 11 जनवरी 2008 को आयोजित किया गया। कार्यषाला में विश्वविद्यालयों अनुसंधान संगठनों और राज्य वन विभागों इत्यादि से प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली अनुप्रयोग के माध्यम से सतत भू-प्रयोग योजना पर कार्यषाला राज्य भू-प्रयोग बोर्ड हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित एचएफआरआई शिमला में 7 सितम्बर 2007 को आयोजित की गई। कार्यषाला में राज्य वन विभागो विश्वविद्यालयों सुदूर संवेदन भारतीय वन सर्वेक्षणन अनुसंधान संगठनों इत्यादि से प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- • उत्तरी पश्चिमी हिमालय में कृषिवानिकी की स्थिति व क्षमता पर कार्यषाला ” राज्य भू-प्रयोग बोर्ड हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रायोजित एचएफआरआई शिमला में 14 से 16 नवम्बर 2006 को आयोजित की गई। कार्यषाला में राज्य वन विभागों विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों इत्यादि से प्रतिभागियों ने भाग लिया।
- “ वानिकी विस्तारण रणनीति समीक्षा पर क्षेत्रीय कार्यषाला ”एचएफआरआई] शिमला में 27 दिसम्बर] 2005 को आयोजित की गई। कार्यषाला में राज्य वन विभागों विश्वविद्यालयों अनुसंधान संगठनों हिमाचल प्रदेश के कृषि] बागबानी पशुपालन ग्रामीण विकास इत्यादि से अधिकारियों ने भाग लिया।
- हितधारकों के साथ बातचीत: संस्थान द्वारा वानिकी अनुसंधान में बेहतर तालमेल विकसित करने के लिए कार्यषाला/ हितधारको की बैठकें वार्षिक तौर पर आयोजित की जा रही हैं। हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर के राज्य वन विभाग के अधिकारी विश्वविद्यालयों / अनुसंधान संगठनों, एनजीओ, किसानों इत्यादि ने ऐसी बैठकों में भाग लिया है।
- पोपलर पर कार्यशाला एवं जोड़ समीक्षा: आईसीएफआरई और विश्वविद्यालयों जहां आईसीएफआरई शोध अनुदान निधि परियोजनाओं को प्रदान की गयी है से वैज्ञानिकों एवं प्रोफेसरों ने कार्यशाला में भाग लिया।
- चिड-पाइन पर कार्यशाला – सह कर्मी समीक्षाएं: भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के अंतर्गत सभी संस्थानों के वैज्ञानिक, विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक तथा हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर वन विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया
- रोपण स्टॉक सुधार कार्यक्रम पर प्रशिक्षण: :सीड प्रोडक्शन एरिया, सीडलिंग सीड ऑर्चर्ड, क्लोनल सीड ऑर्चर्ड एवं वेजेटेटिव मल्टीपलीकेशन गार्डन इत्यादी के बेहतर प्रबंधन के लिए हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर राज्य के अधीन के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया
- पहाड़ी बांस के संरक्षण पर प्रशिक्षण: हिमाचल राज्य के वन विभाग के अधिकारियों को पहाड़ी बांस के बेहतर संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए स्व:वित्तपोषित प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया
- वन कीट विज्ञान एवं जेविक नियंत्रण पर कार्यशाला सह-सहकर्मी समीक्षा (Peer Review): भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के अंतर्गत सभी संस्थानों के वैज्ञानिक, विश्वविद्यालयों के प्राध्यापको ने भाग लिया
- अंतिम उपयोगकर्ताओं ने अनुसंधान उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार: वन विभाग के अधिकारियों, वन पालों, वन रक्षकों तथा विश्वविद्यालयों, कॉलेज तथा पाठशालाओं के छात्रों एवं किसानों के लिए संस्थान का सुगम आयोजन किया गया ताकि संस्थान के द्वारा दिए गए शोध के निर्देशों का प्रचार किया जा सके
- अनुसंधान प्राथमिकता निर्धारण पर कार्यशाला: : संस्थान के अधिकतर क्षेत्रान्तर्गत क्षेत्रों के लिए वानिकी अनुसंधान प्राथमिकताओं का निर्धारण करने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिससे भारतवर्ष के अधिकारियों, विश्वविद्यालयों के प्राध्यापको तथा वैज्ञानिकों ने भाग लिया
- राज्य वृक्ष पर उत्सव: देवदार वृक्ष हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों के राज्य वृक्ष के रूप में पहचान की गयी है I भारत की स्वतंत्रता की ५० वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए सेक्रेड हार्ट पब्लिक स्कूल, तारा हॉल, शिमला में क्विज प्रतियोगिता, ऑन स्पॉट पेंटिंग व निबंधन लेखन इत्यादि का आयोजन किया गया एवं देवदार वृक्ष के महत्व एवं प्रासंगिता पर स्कूल के बच्चोँ को जानकारी उपलब्ध करवाई गयी
- विद्यालय के छात्रों के लिए कार्यक्रम: संस्थान नियमित रूप से विद्यालों एवं महाविद्यालों के छात्रों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करवाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है I इस कार्यक्रम द्वारा छात्र विभिन्न वनस्पतियों एवं जिव-जंतुओं से परिचित होते है, महत्वपूर्ण सुगन्धित और औषधीय पौधों और उनके उपयोगिता पर जानकारी प्राप्त करते है I वनस्पति संग्रहालय तैयार करके (हेर्बरियम) की पद्धति सीखते है तथा सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते है
- किसानों के लिए कार्यक्रम: संस्थान द्वारा यु.एन.डी.पी. कार्यक्रम के तहत किसानों को कृषि-वानिकी के क्षेत्र में नवीनतम तकनिकी जानकारी गंतव्य कराने के उद्देश्य से उन्हें पन्त विश्वविद्यालय तथा शीमको (रुद्रपुर, उत्तराखंड) का एक दौरा कार्यक्रम का आयोजन किया गया I संस्थान द्वारा हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब तथा सुंदरनगर में किसानों के लिए किसान मेलों का भी आयोजन किया गया I इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर के किसानों के लिए “एक्स्पोजेर भ्रमण” का आयोजन किया गया जिसके तहत किसानों को वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून हर्बल बाज़ार, हरिद्वार: द्वारा फार्म, जगाधरी, यू.एच.ऍफ़ रिसर्च सेंटर, धोलाकुआं (पांवटा साहिब) का भ्रमण कराया गया
- ग्रामीण महिलाओं की सामजिक आर्थिक उथान : आई.डी.आर.सी. परियोजना के तहत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में खनन गतिविधियों से प्रभावित महिलाओं के लिए सिलाई कार्यक्रम का आयोजन किया गया
- संस्थान की गतिविधियों का प्रदर्शन: हिमाचल प्रदेश वन विभाग के सहयोग से एक व्याख्या केंद्र (इंटरप्रिटेशन सेंटर) “शोश्म वन विहार” पालमपुर संस्थान द्वारा विकसित तकनीकों, अनुसंधान उपलब्धियों तथा संस्थान द्वारा शुरू की गयी परियोजनाओं को आत्म व्याख्यात्मक प्रदर्शन (सेल्फ एक्स्प्लेनेटरी एक्सिवीटिव )के रूप में प्रदर्शित किया गया
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