शंकुधर वृक्ष
पौधशाला तकनीक का मानकीकरण
बीज उत्पादन क्षेत्रों की स्थापना
शीत मरूभूमियों का वनीकरण / एल्पाइन चरागाहों का प्रबंधन
खनन क्षेत्रों के पुनर्वास
पापारिस्थितिक एवं पादप-समाजशास्त्रीय अध्ययन
कीट एवं रोग प्रबंधन
कृषि-वानिकी व विस्तारण गतिविधियां
वानस्पतिक संग्रहालय
पश्चिमी हिमालय शीतोष्ण तरुवाटिका
प्रकाशन
औषधीय पौधों और एनडब्ल्यूएफपी
कीट एवं रोग प्रबंधन:
-
चौड़ी पत्तीदार प्रजातियों के नाषिकीट पर अध्ययन: पोपलर षूट बोरर (ईकोसमा ग्लेसीटा) के जीवन इतिहास पर कार्य किया और नियंत्रण उपाय विकसित किए।
-
शंकुवृक्ष के हानिकारक कीट पर अध्ययन:
विकास के विभिन्न चरणों के दौरान देवदार पर लगभग 60 कीट प्रजातियां नुकसान पहुंचाती हैं जिनमें से ईक्ट्रोपिस देओदारे सबसे घातक कीट माना गया और उसके नियंत्रण उपायों का सुझाव दिया। देवदार वृक्ष जड़ के सड़ने से भी संक्रमित होते हैं जो फाईटोफ्थोरा सीनामोमी के कारण होता है। जिसे ट्राईकोड्र्मा विरडी, एक जैविक नियंत्रण एजेंट के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
|
|
ईक्ट्रोपिस देओदारे का विकसित लारवा
|
फाईटोफ्थोरा सीनामोमी का देवोदार पर संक्रमण
|
-
हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश में चीड़ की मृत्यु की समस्या का कारण चार प्रकार के तना छेदक कीट पाये गये हे| जिनमे: स्फेनोंटेरा आर्टिसीमा, क्रेपटोराईनकस रफेसेंस, प्लेटिप्स बाईफोरमिस, तथा पोलीग्रेफ़्स लोंगीफोलिया का भारी क्षति ज्ञात हुई और नियंत्रण उपायों का सुझाव दिया।
|
|
चीड़ की नशवरता
|
चीड़ के तना छेदक कीट
|
-
हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में कैल (पाईनस वालीचियाना) के सूखने का कारण एक कीट भृंग पीटोजीन्स साईट्स का प्रकोप है। इसके प्रबंधन के लिए जैविक नियंत्रण एजेंट की प्रभावशीलता का हल निकाला जा रहा है।
-
हिमाचल प्रदेश में शीत मरूभूमियों के सिस्सू, खंगसार, गोंधाला, किलांग और स्तिंगरी क्षेत्रों में विलो पौधो की उच्च मृत्युदर मुख्य रूप से जल संसाधनों की कमी के कारण बनी। बीमार वृक्ष लार्ज विलो एफिडष् टूबेरोक्लेन्स सेलीगनस (होमोटेरा: एफीड़ोईडिया : लेक्कनिडी ) से भी पूरी तरह पीड़ित थे। एक सही प्रबंधन अभ्यास जो मोनोकल्चर को दूर करके, पौधरोपण के इर्द-गिर्द वैकल्पिक जलप्रवाह की व्यवस्था और कुछ कीटनाशकों के प्रयोग के सुझाव दिए गए ।
|
|
|
विलो के तने पर एफीड
|
विलो के तने पर विकसित एफीड
|
मृत विलो पौधे
|
|
चीड़ पाइन वनों में छाल एवं लकड़ी छेदक कीटों का प्रबंधन:
प्रजातियों की महत्ता तथा छाल एवं लकड़ी छेदकों से वास्तविक खतरे को देखते हुए फील्ड में चीड़-पाइन के 7 उद्गम जांचे गए और तना छेदक कीटों यथा: पोलीग्रेफेस लोंगीफोलिया, ईप्स लोंगीफोलिया, कृपटोराएनकस रफेसेंस तथा श्फ़ेनोटेरा एटेरीना के हमले का मूल्यांकन किया। गिरि गंभर उद्गम (58 प्रतिशत) और कांगड़ा घाटी (53.2 प्रतिशत) अतिसंवेदनशील हैं जबकि सीर कुनार खड्ड (8.1 प्रतिशत) और व्यास घाटी (7.0 प्रतिशत) संवेदनशील हैं।
डलबर्जिया सिस्सू में कीट- रोग सिंड्राम का नियंत्रण:
शीशम (डलबर्जिया सिस्सू) के चालीस उद्गमों की सिंड्राम मुक्त चयनित खंड प्रतिदर्ष में प्राकृतिक परिस्थितियों के अन्तर्गत जैनोडर्मा जड़-सड़ने व दीमक के लिए जांच की गई। रामपुर उद्गम जो 2.0 प्रतिशत वृक्ष मृत्युदर के साथ प्रतिरोधी के तौर पर मूल्यांकित किया गया, पौधे की उंचाई व डीबीएच के मामले में पांचवा बेहतर था।
देवदार निष्पत्रक, एक्ट्रोपिस डेयाडारा प्राउट (लैपीडोप्टेरा: जियोमेट्रिडे) का प्रबंधन:
देवदार निष्पत्रक, जो देवदार वन का एक विनाषकारी निष्पत्रक (डीफोलिटर) है, पर आई.पी.एम माडल विकसित किया गया। जटिल निष्पत्रण समस्या, कीट के छिट-पुट प्रकोप के बावजूद, प्रकोप की स्थिति में सिल्वीकल्चर, मेकेनिकल और जैविक नियंत्रण अंगीकार करने से कीट को संभाला जा सकता है।
इप्स लौंगीफोलिया भृंग हमले के लिए फैरोमोंस तकनीक
चीड़ पाइन पौधरोपण में इप्स लौंगीफोलिया स्टैब (सियोप्टेरा: स्कालिटाइड) के-फेरोटीटीएम (फेरोमान ट्रैप) में 8 मि.ग्रा. की दर से इप्सडिनोल (एस) -2-मिथाइल-6 मेटाइलिनिआक्टा-2,7-डिन-4-01 प्रभावी पाया गया। एक हैक्टेयर पौधरोपण में 12-20 फेरोमोन ट्रैप की आवश्यकता होती है।
 |
 |
 |
 |
बीटल का संक्रमण |
फिरोमोन ट्रैप |
चीड़ पाइन वन में पालीग्राफस लौंगीफोलिया बीटल का प्रबंधन
बीटल को आर्किर्षत करने के लिए 95-110 सेमी लंबाई एवं 90-100 सेमी जीबीएच तथा 25 से 35 प्रतिशत आर्द्र तत्व के साथ ट्री-ट्रैप प्रभावी पाया गया।
 |
 |
हमीरपुर वन क्षेत्र मे बीटल के लिए ट्री-ट्रैप का उपयोग |
थाइसेनोप्लूषिया ओरीकलेसीआ (लेपीडोपटेराः नाकटूईडे) का नियंत्रण - सौषूरिआ कास्टस (कूठ) का गंभीर निष्पत्रक (डिफोलीएटर)
500 ग्राम/एम एम की दर से नीम केक, 5.0 प्रतिशत की दर से ग्रोनिम और 5.0 प्रतिशत की दर से समर आयल सौषूरिआ कास्टस में थाइसेनोप्लूषिया ओरीकलेसीआ की संख्या आर्थिक दहलीज स्तर से नीचे रखने में प्रभावषाली साबित हुआ है।
निदेशक का संदेश

डॉ.संदीप शर्मा , निदेशक
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान (हि.व.अ.सं), शिमला की वेबसाइट पर आपका स्वागत करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है संस्थान, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर की वानिकी अनुसंधान आवश्यकताओं को संबोधित करता है संस्थान को परिषद द्वारा इन कठिन क्षेत्रों में पारिस्थितिक पुन: स्थापन में उच्च अनुसंधान हेतु शीत मरुस्थल पुन:स्थापन एवं चारागाह प्रबंधन उन्नत केंद्र का दर्जा दिया गया है अधिक »
Sale of Books and Bulletins